आडवाणी से नफ़रत और मोहब्बत........

Published By :  Pravesh Gautam

Jun 19,2017 | 11:51:22 pm IST |  8753

 रिज़वान अहमद सिद्दीक़ी। लाल कृष्ण आडवाणी राम रथ यात्रा पर निकले, तब मै युवा था मेरे कुछ दोस्त भी आपस मे विरोधी हो गये थे, जिसके कारण अडवानी जी के प्रति मेरे मन मे लंबे समय तक नकारात्मक भाव रहे, देश  मे साम्प्रदायिक विद्वेष गहरा गया था। उस वातावरण में दोस्त दुश्मन बन गये थे मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ मेरा एक सहपाठी मुझे जेल भेजने पर आमादा था। ईश्वर की कृपा से मैं बच गया लेकिन अफ़सोस कुछ साल बाद  मेरी एक ख़बर ने उसे ज़रूर जेल पहुंचवा दिया, शुक्र है आज हम फिर बहुत अच्छे दोस्त है। 

 आपको याद होगा कटनी मप्र में बीजेपी के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी पर चरण पादुका (खड़ाऊं) फेंकी गई थी। इस घटना को अंजाम देने वाले बीजेपी नेता पावस अग्रवाल को जेल भेज दिया गया। 17 बरस पहले  भी युवा पावस मेरी एक ख़बर पर जेल गया था तब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था, बाबरी मस्जिद कांड के बाद मप्र की पटवा सरकार बर्ख़ास्त हो चुकी थी। कालांतर में आडवाणी से नफ़रत करने वाला पावस कभी उनके लिये मरने मारने पर उतारू था, इसी ज़ज़्बात में वो मुझ पर आपराधिक मामला दर्ज करवाने के लिये जुलूस निकाल रहा था हम दोनों नौजवान थे और अपने अपने इरादे के पक्के। किसी ज़माने में क्लास रूम में एक साथ बैठने वाले सहपाठियो के मध्य एक दूसरे के प्रति देश के माहौल ने कटु विरोध का भाव पैदा कर दिया था। 

आज इतने दिन बाद पलट कर देखता हूँ तो लगता है, राम मंदिर ही तो मांग रहे थे आडवाणी इसमें ग़लत क्या है, राम मंदिर अयोध्या में नही बनेगा तो कहां बनेगा? लेकिन उसके लिये अपनाये गये उनके तरीके पर मेरी आज भी घोर आपत्ति है। सियासत का जो मक़सद था पूरा हो गया, उनकी पार्टी देश की सत्ता पर पहुँच गई, लेकिन अफ़सोस मंदिर मुद्दे की तरह वो भी हाशिये में है।

आज आडवाणी गुजरात नरसंहार को लेकर भी याद आये लेकिन यहां भी पार्टी लाइन के एक ताक़तवर मुख्यमंत्री की ही तो हिमायत की थी उन्होंने......

याद करता हूँ, तो लालू यादव भी याद आते हैं उन्होंने अडवानी जी का रथ रोक लिया और तब बारी थी अटल बिहारी बाजपेयी की उन्होंने वीपी सिंह की सरकार गिरा दी। फिर राजधर्म याद दिलाना या रथ वाला मुद्दा हो उन्हें अटल जी का समर्थन प्राप्त हो ही गया था, फिर भी अटल जी सर्वस्वीकार हो गये तो अडवानी क्यो पिछड़ गये, इस प्रश्न का उत्तर आज भी नही मिला। 

सलाहकार मंडल आज पूरी तरह से हाशिये में चला गया कुछ नैतिकता के तक़ाज़े, कुछ राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक और अडवानी युग अंत की ओर......

आज मै अडवानी जी के प्रति सहानुभति महसूस कर रहा हूँ उनके लिये बुरा भी लग रहा है,  इतिहास गवाह है, हुकुमतों में फ़ादर और गॉडफ़ादर का कई बार ऐसा हश्र हुआ है..... 

अंत मे - बोये पेड़ बबूल के तो आम कहा से होय......

(लेखक न्यूज़ वर्ल्ड चैनल के एडिटर इन चीफ़ हैं।)

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